Special Report: कोविड-19 के साथ ही बढ़ सकता है पानी और स्वच्छता का संकट

Special Report: कोविड-19 के साथ ही बढ़ सकता है पानी और स्वच्छता का संकट

नरजिस हुसैन

कोरोना वायरस आज पूरी दुनिया में फैल चुका है। जानकारों का कहना है कि इस महामारी से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है कुछ घंटों पर हाथ धोना। हाथो को धोना ही इस बीमारी से बचने का अब तक आखिरी रास्ता बताया जा रहा है। भारत जैसे घने बसे देश और ज्यादा घनत्व वाले देश में साफ-सफाई हमेशा से एक मुद्दा रहा है। लेकिन देश में जिस तरह से पिछले दो महीनों में सरकार और हेल्थ कर्मी जिस तरह से बार-बार जनता से हाथ धोने की अपील करते दिख रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि कुछ ही वक्त बाद ये हालत देश में पानी और स्वच्छता पर बड़ा सवालिया निशान लगाने वाली है।

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भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया आज पानी की कमी से जूझ रही है। हालांकि, हम सभी अब यह जानते हैं कि कोविड-19 से लड़ने के लिए हमें जिस हथियार की जरूरत है वह है पानी और साबुन। युनाइटेड नेंशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में 220 करोड़ लोगों के पास पीने का साफ पानी मौजूद नहीं है। जबकि 420 करोड़ लोगों के पास साफ-सुथरे शौचालय नहीं है और करीब 300 करोड़ के पास साबुन से हाथ धोने की सुविधा नहीं हैं। इन मौजूदा हालातों में जल्द ही आने वाले वक्त में कोविड-19 को हरा पाना हर दिन मुश्किल होता जा रहा है। खासकर भारत जैसे देश में जहां कई जगहों पर लोग नहाते भी यह देखकर हैं कि खाना पकाने का पानी घर में बचेगा कि नहीं। इसलिए कोविड-19 जैसे-जैसे पानी की कमी वाले देशों या इलाकों में फैलता जा रहा है उसने सरकार के लिए अब एक नई चुनौती खड़ी कर दी है।

भारत के आगे भी आज पानी की गंभीर चुनौती है। देश में लगातार दो बार कमजोर मानसून के चलते 33 करोड़ लोग सीधे इससे प्रभावित हुए हैं। हालांकि, 50 फीसद आबादी कहीं-न-कहीं सूखे की चपेट में भी आई। पानी से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही संस्था वॉटर ऐड ने वाइल्ड वॉटर- दि स्टेट ऑफ द वल्र्डस वॉटर 2017 नाम की रिपोर्ट में यह कहा कि जहां दुनिया में 66 करोड़ 30 लाख लोगों को आने वाले वक्त में साफ पीने का पानी नहीं मिलेगा वहां भारत के ग्रामीण इलाकों की हालत सबसे ज्यादा पस्त होगी इन इलाकों में करीब 6 करोड़ 34 लाख ग्रामीण लोग पीने के साफ पानी से महरूम होंगे। हालांकि, दूसरी तरफ दुनिया के अन्य देशों की हालत भी ठीक नहीं होगी लेकिन इतनी बदतर नहीं पहुंच पाएगी। कुछ वक्त बाद पहली बार भारतीय सरकार ने इस बारे में आधिकारिक तौर रिपोर्ट की इस बात को सही माना। इसके बाद ही भारत के नीति आयोग ने 2018 में अपनी “Composite Water Management Index Report” में सरकार ने माना कि फिलहाल देश में 60 करोड़ भारतीयों को पानी की कमी है। 

नीति आयोग की रिपोर्ट में पहली बार आधिकारिक तौर पर सरकार ने माना कि देश के 21 बड़े शहरों (दिल्ली, बंगलुरू, हैदराबाद, चेन्नई और अन्य)  में 2020 तक भूजल का स्तर जीरो यानी शून्य हो जाएगा। जिसका सीधेतौर पर 100 करोड़ लोगों पर असर पड़ेगा। यह बात और है कि देश का 12 फीसद आबादी पहले से ही पानी की कमी झेल रही है। रिपोर्ट में 2030 तक पानी की मांग दोगुनी होने की भी बात कही गई है। फिलहाल, करीब 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में 75 प्रतिशत लोगों के घर पीना का पानी नहीं है और हमारा 70 फीसद पानी किन्हीं वजहों से दूषित है। भारत वॉटर क्वालिटी एंडेक्स में 122 देशों की फेहरिस्त में 120वें नंबर पर आता है।

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आइए अब जरा जायजा ले भारत में शौचालयों और स्वच्छता का। एनएसएसओ के 2012 सर्वे के मुताबिक देश के ग्रामीण हिस्सों में 32 प्रतिशत के पास ही शौचालय हैं। पूरी दुनिया में 9 करोड़ 46 लाख लोग खुले में शौच करते हैं जिसमें 5 करोड़ 64 लाख भारत में रहते हैं। हालांकि, देश की आजादी के साथ ही भारत स्वच्छता की समस्या से भी हमेशा लड़ता रहा। 2014 में पहली बार स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया गया जिसमें 2019 तक 100 करोड़ शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया ताकि 44 प्रतिशत आबादी जो अब तक खुले में शौच कर रही थी वह आंकड़ा खत्म हो सके। इसका असर भी देखा गया जहां 2014 में स्वच्छता का आंकड़ा 41.92 प्रतिशत था वहीं 2017 तक बढ़कर 64.188 फीसद पहुंच गया। 2017 तक सरकार ने अपने लक्ष्य पर आधी सफलता हासिल कर ली थी। अब तक देश में 475 शहर खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। सरकार की इतनी कोशिशों के बावजूद आज भी नीतिगत स्तर पर देश स्वच्छता, खुले में शौच और शौचालय निर्माण की समस्या से पूरी तरह आजाद नहीं हो पाया है।

इन सबी बातों और हकीकतों के मद्देनजर हम अब भी नई मुसीबतों और परेशानियों को सुलझाने की तरफ भाग रहे हैं ये जाने बिन कि जब तक पुरानी और जड़ वाली समस्याएं हमारे सामने खड़ी हैं तब तक हम लाख कोशिशों के बाद भी नई परेशानी का मुकाबला नहीं कर सकते। खासकर स्वास्थ्य संबंधी हमारी नीतियां आज भी बिना तकनीकी हलों के हवाई किले की तरह साबित हो रही हैं। नीतियां बनाते वक्त स्रोत, पब्लिक फंड जोकि नाकाफी हैं और नीति पर पैसा खर्च करने के नए जरिए, नीतियों का नियमन और अमल में आने वाली अड़चने ये सब सरकार बिल्कुल दरकिनार कर देती है। कोविड-19 ने न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के बड़े मेडिकली सफल अर्थव्यवस्थाओं को भी यह सिखाया कि किसी भी बीमारी से बचने के लिए जना के पास सबसे पहले पानी, शौचालय और साफ-सफाई की मौजूदगी कितनी जरूरी है।

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भारत को आज सबसे पहले स्वास्थ्य के प्रति अपना नजरिया बदलने की बेहद जरूरत है। इस वक्त भारत अपनी जीडीपी का 1.2 प्रतिशत ही पब्लिक हेल्थ पर खर्च करता है जोकि बहुत कम है। दरअसल ये इतना कम है कि भारत के पड़ोसी देश भी इस लिहाज से इससे आगे है। स्वास्थ्य सेक्टर सरकार के इस इरादे से भी नाराज है जिसमें हालिया सरकार ने 2025 तक कुल जीडीपी का 2.5 फीसद हिस्सा पब्लिक हेल्थ को देने की बात की है। हालांकि, इस वक्त भी पब्लिक हेल्थ पर हर देश अपनी जीडीपी का औसतन 6 फीसद हिस्सा खर्च कर रहा है। सरकार को चाहिए कि मुसीबत की इस घड़ी में प्राइवेट सेक्टर और उद्योगपतियों सहित जानकारों और विशेषज्ञों सभी को साथ लेकर चले और किसी भी बड़े नुकसान से पहले जल्द से जल्द परेशानी का हल ढूंढने की पहल करे।

 

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